We had many lyricist today but Ghalib Saheb is still unmatchable.See the poet what says about one lover---
"मैंने चाहा था के अंदोहे-वफ़ा से छूटूँ
वो सितमगर मेरे मरने पे भी राज़ी न हुआ"
The meaning is.
मोहब्बत के ग़म से निजात हासिल करने के लिए मैंने मरना चाहा था लेकिन ज़ालिम महबूब मेरी मौत के लिए भी रज़ामन्द न हुआ। क्योंके मुझ जैसा वफ़ा करने वाला आशिक़ कोई और नज़र नहीं आ रहा था।
Kya baat hai.One more is here.
किससे मेहरूमिए क़िसमत की शिकायत कीजे
हमने चाहा था के मर जाएँ सो वो भी न हुआ
Meaning.
हमारी क़िस्मत भी अजीब है। हमें हर काम में मेहरूमी नसीब हो रही है, यहाँ तक के हमने मरना चाहा तो मर भी न सके, अब इस की शिकायत किससे करें।