अर्ज़ है ,
दिल के दर्द को यूँ छुपा न सके
पीना था जाम साकी
आंसुओं से गम को भुला बैठे
क्या कहे की हमसे ये हो नहीं सकता
और वो हमें अपना बना न सके
मुहब्बत में खोया होगा ग़ालिब
तुमने बहुत कुछ
पर नाचीज़ तो अपने अश्को को
खोकर हीं डूबता है
आ जाये कोई सैलाब
ले जाये नीर की इस माला को
क्या कहू की मालिक
तेरा भरोषा भी अब और न रहा...
पीना था जाम साकी
आंसुओं से गम को भुला बैठे
क्या कहे की हमसे ये हो नहीं सकता
और वो हमें अपना बना न सके
मुहब्बत में खोया होगा ग़ालिब
तुमने बहुत कुछ
पर नाचीज़ तो अपने अश्को को
खोकर हीं डूबता है
आ जाये कोई सैलाब
ले जाये नीर की इस माला को
क्या कहू की मालिक
तेरा भरोषा भी अब और न रहा...